किरचा किरचा ज़िन्दगी ~ चंद अशआर


किरचा किरचा ज़िन्दगी
टुकड़ा टुकड़ा जी गया
खा गई कुछ वो मुझे
कुछ उसे मैं पी गया
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उनींदी आँखों में ख़्वाब जागता है कोई,
बियाबां आसमाँ में चाँद ताकता है कोई ।
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थीं चार कदम फासले मंज़िल विसाल की,
सरे राह अड़ गईं मगर बदबखतियाँ मेरी।
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स्याह आसमान पर झिलमिलाते लफ़्ज़,
इस खूबसूरत रात का मुसव्विर कौन है ।
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