उलट दो सब रेत घड़ियाँ



उलट दो सब रेत घड़ियाँ
कि शायद वक़्त ऐसे ही वापस चला जाए
जहाँ से आया था
कोई तो उसकी भी राह तकता होगा
मुसाफिर जो लौट कर कभी नहीं आया
इंतज़ार तो कोई उसका भी करता होगा
उलट दो कि
तुम्हें भी याद रखेगा कोई
अपनी दुआओं में 

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