दिल निकलकर तेरे पैरों पे तो ठिठका होगा,
तुझको तककर थोड़ा तो मुस्कुराया होगा,
तेरे अश्क़ भी बहे होंगे कोहनी कोहनी,
तूने ग़म को जो आखों से बहाया होगा,
सुर्ख रुखसार भी तो ज़र्द-से हुए होंगे,
फूल चेहरा भी यूं ही ना कुम्हलाया होगा,
हिचकियों में जो उठती होंगी घनी पलकें,
वो घनी छाँव ही मेरा आखरी साया होगा,
किये बंद वो कजरी आँखों के दरवाज़े,
मेरे होठों ने जब ये दर खटखटाया होगा।
लफ्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे,
तूने जब आखरी खत मेरा जलाया होगा।
लफ्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे, तूने जब आखरी खत मेरा जलाया होगा।
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॰ कागज़ की धज्जियों पे खूबसूरत हर्फों में लिखता हूँ कुछ बेमानी लफ़्ज़ ख़्वाब ....... सुकून...... इश्क़..... और भी बहुत कुछ और फिर उड़ा दे...
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दिल निकलकर तेरे पैरों पे तो ठिठका होगा, तुझको तककर थोड़ा तो मुस्कुराया होगा, तेरे अश्क़ भी बहे होंगे कोहनी कोहनी, तूने ग़म को जो आखों से बहाया ...
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