कुछ साए रूह के
फिर हर सिम्त दीवार हुई
एक-एक कर साए मरते गए
और आख़िरी साँस की मौत के साथ ही
रूह भी फ़ौत हुई
फ़क़त जिस्म ही बचा .... दफ़न को
बेसाया ........ बेरूह ........
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कोई भी रचना पसन्द आए तो हौसला अफजाई ज़रूर करें , आपकी बेबाक सलाहों और सुझावों का हमेशा स्वागत रहेगा ।
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