ना किसी से सुने गए, ना किसी से कहे गए
जाने किस रौ में हम, अपना मरसिया पढ़े गए
तीरो तलवार ना खंजर ना बंदूक ना नेज़े
सिवा इन सबों के, सारे हथियार हम सहे गए
वो जो ज़ख्मी हुए जाते हैं, नाज़ुक गुलों कि चोट से
कहो उनसे कि, चमन के सारे ख़ार हम सहे गए
उनका तो जो भी हुक्म है, तामील हो तामील हो
जज़्बात जो हमारे, हमारे ख़ून में बहे गए
लानतें, मज़म्मतें, शिकायतें, जहाँ हुईं
वहीं पे हम सुने गए, वहीं पे हम कहे गए
तामीर दिल में कब्र की, दर्द को दफ़न किया
यूँ शहरे खामुशा से, खामोश हम चले गए
इक ज़िंदगी की पुर्सीश-ए-खामोश* में चले
'मश्कूक' हम जिये कहाँ, बस मरे मरे गए
वारफ्तगी^ जो थी हयात में, वो छीन ली
वहशत हुई तारी, कि हम रहे-सहे गए
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पुर्सीश-ए-खामोश* - silent inquiry
वारफ्तगी^ - self-forgetfulness
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