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गुलमोहर
के झरते पत्तों की ज़र्द बारिश में,
कोई
चेहरा अनजाना सा, कुछ जाना-पहचाना सा,
याद
दिलाता किसी की,
छूट
गया था किसी मोड़ पर,
मुझसे
किसी वादे की तरह,
कि
आओगे लौट कर,
लेकिन
ये हो न सका,
गुज़रे
वक़्त की तरह तुम फिर कभी आ ना सके,
खड़ा
हूँ, उसी मोड़ पर, गुलमोहर के नीचे,
सुनहरे
फूलों के तले,
झरते
पत्तों की सूखी बारिश में,
आज
भी ।
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