हैं रास्ते मेरे हमसफर मेरा हमनवां कोई नहीं


हैं रास्ते मेरे हमसफर, मेरा हमनवां कोई नहीं,
ये सफर ही मंज़िल है मेरी, मेरा रास्ता कोई नहीं

ये हजारों मील हैं फ़ासले, वो जो दरमियाँ तेरे मेरे,
तू जलवागर मेरे रूबरू, मुझे वास्ता कोई नहीं

मयखाने की थी ना जुस्तजू, ना ही सोहबत-ए-मय की आरज़ू,
यूँ बेख़ुदी में हूँ झूमता, शौक़-ए-नशा कोई नहीं

ईमां जो लाकर शेख़ ने, देखा था जब बहिश्त को,
जन्नत में वो काफिर मिले, जिनका ख़ुदा कोई नहीं

'मशकूक' फिर रहे हैं वो, तलाश-ए-मुजरिम में यहाँ,
क़ातिल है महफिल सब तेरी, यहाँ पारसा कोई नहीं

-----
पारसा - पवित्र (pious, innocent)

No comments:

Post a Comment

कोई भी रचना पसन्द आए तो हौसला अफजाई ज़रूर करें , आपकी बेबाक सलाहों और सुझावों का हमेशा स्वागत रहेगा ।

पसंदीदा